CBSE result: अटल उत्कृष्ट विद्यालयों को बिना संसाधनों के सीबीएसई संबद्धता पड़ गई भारी, बोर्ड परीक्षा के परिणाम से अब लेना होगा सबक, खराब परीक्षाफल के रहे यह प्रमुख कारण


 उत्तराखंड में 2 वर्ष पहले अस्तित्व में आए 189 अटल उत्कृष्ट राजकीय इंटर कॉलेजों की सीबीएसई संबद्धता के बाद पहला बोर्ड परीक्षाफल बेहद निराशाजनक रहा है। बिना मूलभूत संसाधनों की पूर्ति के आननफानन में सीबीएसई संबद्धता लेना इन विद्यालयों को भारी पड़ा है। विद्यालयों में प्रधानाचार्य के रिक्त पद, शिक्षकों की तैनाती के दोहरे मानक, शासनदेश के अनुरूप इन विद्यालयों का कोटिकरण का निर्धारण न किया जाना और बालिकाओं के लिए कक्षा 10 में गणित विषय की अनिवार्यता निराशाजनक परीक्षाफल के प्रमुख कारण माने जा रहे हैं और नतीजन पहली ही परीक्षा में आधे परीक्षार्थी फेल हो गए।

   पहले चरण में 189 सरकारी स्कूलों को अटल उत्कृष्ट स्कूल बनाया गया था। इन स्कूलों के छात्रों ने इस साल पहली बार सीबीएसई बोर्ड की 10 वीं और 12 वीं की परीक्षा दी, लेकिन 12 वीं में जहां आधे छात्र फेल हो गए। वहीं 10वीं का पास प्रतिशत मात्र 60.49 प्रतिशत रहा है। अधिकतर शिक्षकों और जानकारों का मानना है कि बच्चे नहीं बल्कि सिस्टम फेल हुआ है। प्रधानाचार्य के रिक्त पद जहां तमाम प्रयासों के बाद भी तीन साल तक नहीं भरी जा सके वही इन विद्यालयों में शिक्षकों की तैनाती के दोहरे मानक, शासनदेश के अनुरूप इन विद्यालयों का कोटिकरण का निर्धारण न किए जाने से शिक्षकों में व्याप्त नाराजगी और बालिकाओं के लिए कक्षा 10 में गणित विषय की अनिवार्यता प्रीक्षाफल को ले डूबा है।

सरकार की ओर से प्रयोग के तौर पर इन स्कूलों को अटल उत्कृष्ट स्कूल तो बना दिया गया, लेकिन इन स्कूलों में न तो पर्याप्त संबंधित विषय के शिक्षक थे न प्रिंसिपल। अंग्रेजी माध्यम से बच्चों को पढ़ाने के नाम पर केवल कुछ शिक्षकों को सुगम में तैनाती कर दी गई। दुर्गम क्षेत्र के स्कूलों में विभाग को शिक्षक नहीं मिले। इन स्कूलों में शिक्षकों की तैनाती में भी दोहरी व्यवस्था अपनाई गई। आरंभ में इन स्कूलों में स्क्रीनिंग परीक्षा से तैनाती और स्क्रीनिंग परीक्षा में प्रतिभाग न करने वाले शिक्षकों को अन्य विद्यालय में समायोजित किए जाने के साथ ही इन विद्यालयों को कोटीकरण में दुर्गम श्रेणी में शामिल करने का प्रावधान किया गया था किंतु 2 वर्ष बीतने के बाद भी यह सारे दावे झूठे साबित हुए हैं। स्क्रीनिंग परीक्षा के बाद जिस उमंग और उत्साह के साथ इन विद्यालयों में शिक्षकों ने काम शुरू किया था वह उत्साह भी अब लगातार कम होता नजर आ रहा है।

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